Hybrid embryo rescue technique
भ्रूण बचाव (Embryo Rescue):-
1. सामान्य परिचय (General Introduction):-
· परिभाषा (Definition):- ऐसा अपरिपक्व या कमजोर भ्रूण जो नष्ट हो सकता है व अपने आप पौधे में विकसित नहीं हो सकता उसे ऊतक संवर्धन तकनीक के द्वारा स्वस्थ पौधे में विकसित करने की प्रक्रिया को भ्रूण बचाव कहते हैं।
(Through tissue culture technique, the process of developing a healthy plant from an immature or weak embryo, which can be destroyed and cannot develops into the plant on its own, is called embryo rescue.)
· दूरस्थ संकरण से भ्रूणपोष का सही प्रकार से विकास नहीं हो पाता है जिससे भ्रूण के नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है।
(Endosperm does not develop properly in distant hybridization, which increases the chances of embryos being destroyed.)
· भ्रूण बचाव प्रक्रिया में कृत्रिम पोषक माध्यम भ्रूणपोष के विकल्प का कार्य करता है। जिससे भ्रूण का विकास बिना रुके लगातार चलता रहता है।
(The artificial nutrient medium serves as an alternate of endosperm in the embryo rescue process. Due to which the development of the embryo continues continuously without stopping.)
2. सिद्धान्त (Principle):- भ्रूण विकास 3 अवस्थाओं में होता है। पोषण आवश्यकता उसी के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
(Embryonic development occurs in 3 stages. The nutritional requirement varies accordingly.)
i. विषमपोषी अवस्था (Heterotrophic Phase):- यह एक प्रारम्भिक अवस्था है जिसमें भ्रूण पोषकों की आपूर्ति के लिए अधिकतर भ्रूणपोष व मातृक ऊतक पर निर्भर रहता है।
(This is an early stage in which the embryo mostly depends on endosperm and maternal tissue for supplying nutrients.)
ii. स्वपोषी अवस्था (Autotrophic Phase):- इस अवस्था में भ्रूण में वृद्धि के लिए आवश्यक पदार्थों के निर्माण के लिए उपापचय क्षमता विकसित हो जाती है। जिससे भ्रूण धीरे धीरे आत्मनिर्भर हो जाता है।
(At this stage, metabolic capacity is developed in the embryo to produce the necessary substances for growth. By which the embryo gradually becomes self-dependent.)
iii. मध्यस्थ अवस्था (Intervening Phase):- यह विषमपोषी व स्वपोषी अवस्था के मध्य की नाजुक अवस्था है। इस अवस्था पर पोषक आपूर्ति अत्यधिक परिवर्तनशील होती है जो अधिकतर पादप जाति पर निर्भर करती है।
(It is a critical stage between heterotrophic and autotrophic. Nutrient supply at this stage is highly variable, depending mostly on plant species.)
· परिपक्व भ्रूण की तुलना में अपरिपक्व भ्रूण संवर्धन के लिए अधिक जटिल माध्यम की आवश्यकता होती है।
(Immature embryos require a more complex medium than mature embryos for culturing.)
· भ्रूण के पूर्ण विकास के लिए इसे कई बार एक माध्यम से निकालकर दूसरे माध्यम में स्थानांतरित करना पड़ता है।
(For complete development of the embryo, it has to be removed from one medium and transferred to another medium.)
3. भ्रूण बचाव के लिए आवश्यक कारक (Factors Required for Embryo Rescue):-
a. माध्यम (Medium):-
· भ्रूण बचाव के लिए अधिकतर MS माध्यम व B5 माध्यम का उपयोग किया जाता है।
(Mostly MS medium and B5 medium are used for embryo rescue.)
· माध्यम का प्रकार व घटक भ्रूण विकास की अवस्था पर निर्भर करता है।
(The type and component of the medium depends on the stage of embryo development.)
· विषमपोषी अवस्था के भ्रूण के लिए जटिल माध्यम की आवश्यकता होती है।
(The heterotrophic stage embryo requires a complex medium.)
Ø ग्लूटेमिन व ऐस्पार्जिन अमीनो अम्ल
(Glutamine and Aspargine amino acids)
Ø विभिन्न विटामिन्स (Different vitamins)
Ø कैसीन हाइड्रोलाइसेट (Casein hydrolysate):-
ये विभिन्न अमीनो अम्लों से प्रचुर होते हैं जिनका उपयोग कई बार किया जाता है।
(They are rich in various amino acids which is used many times.)
Ø सुक्रोज (Sucrose):- इसका उपयोग ऊर्जा स्त्रोत व ओस्मेटिकम के रूप में किया जाता है।
(It is used as an energy source and osmaticum.)
Ø अमोनियम नाइट्रेट (Ammonium Nitrate):- नाइट्रोजन स्त्रोत के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
(It is used for nitrogen sources.)
Ø नारियल का द्रव भ्रूणपोष (Liquid Endosperm of Cocconut):-
यह माध्यम में विशिष्ट अमीनो अम्ल, शर्करा, वृद्धि नियामक आदि की आपूर्ति करता है।
(It supplies specific amino acids, sugars, growth regulators etc. in the medium.)
Ø सामान्यतया वृद्धि नियामकों की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि ये कैलस निर्माण को प्रेरित करते हैं।
(Growth regulators are generally not required as they induce callus formation.)
Ø भ्रूण वृद्धि के लिए pH 5.0 से 7.5 के मध्य रखी जाती है।
(The pH is kept between 5.0 and 7.5 for embryo growth.)
· स्वपोषी अवस्था के भ्रूण के लिए सरल माध्यम की आवश्यकता होती है।
(Autotrophic stage embryos require simple medium.)
· अंकुरण के लिए सुक्रोज युक्त सरल अकार्बनिक माध्यम की आवश्यकता होती है।
(Germination requires a simple inorganic medium containing sucrose.)
b. ताप व प्रकाश (Temperature and Light):-
· रबी फसलों के भ्रूण विकास के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है जबकि खरीफ फसलों के भ्रूण विकास के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
(Low temperature is required for embryonic development of rabi crops whereas high temperature is required for embryonic development of kharif crops.)
· असामयिक अंकुरण को रोकने के लिए प्रारम्भिक संवर्धन अंधेरे में किया जाता है। अंधेरे में 1 – 2 सप्ताह रखने के पश्चात पर्णहरित निर्माण के लिए बाद में इसे प्रकाश में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
(Initial culture is done in the dark to prevent premature germination. After keeping 1 - 2 weeks in the dark, it is later transferred to the light for chlorophyll formation.)
4. भ्रूण बचाव की सामान्य विधियाँ (General Embryo Rescue Procedures):-
i. भ्रूण संवर्धन (Embryo Culture)
ii. बीजाण्ड संवर्धन (Ovule Culture)
iii. अंडाश्य संवर्धन (Ovary Culture)
i. भ्रूण संवर्धन (Embryo Culture):-
· यह भ्रूण बचाव की बहुत अधिक सामान्य प्रक्रिया है जिसमें भ्रूणो को निकालकर सीधे संवर्धन माध्यम पर स्थापित किया जाता है।
(It is a very common process of embryo rescue in which embryos are extracted and placed directly on the culture medium.)
· ऐसे नियंत्रित परागण वाले पौधों के फल जिनमें भ्रूण के नष्ट होने की संभावना रहती है उन्हें समय से पहले एकत्रित कर लिया जाता है।
(The fruits of such controlled pollinated plants, which are prone to embryo destruction, are collected before maturation.)
· बीजों के अन्दर उपस्थित अपरिपक्व भ्रूण निर्जमित अवस्था में होते हैं इसलिए इनके निर्जमीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। कुछ मामलों में सम्पूर्ण अंडाशय का सतही निर्जमीकरण किया जाता है।
(Immature embryos present in the seeds are in sterilized state, so they do not require sterilization. In some cases surface sterilization of the entire ovary is done.)
· भ्रूण को बीज से निकालने के तुरन्त बाद सीधे माध्यम पर स्थापित कर दिया जाता है इसलिए यह सूखता नहीं है। हृदय नुमा व तरुण भ्रूणो को इनके निलंबक सहित साबुत निकालना चाहिए।
(The embryo is placed directly on the medium immediately after it is extracted from the seed so it does not dry up. Heart shaped and young embryos should be removed intact with their suspensors.)
ii. बीजाण्ड संवर्धन (Ovule Culture):-
· बहुत अधिक छोटे बीज वाली जतियों से व बहुत अधिक तरुण भ्रूणो को निकालना कठिन होता है। भ्रूण को निकालते समय इनके क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है। भ्रूण को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए इसे बीजाण्ड के अन्दर रखकर ही संवर्धित किया जाता जाता है। इस तकनीक को बीजाण्ड संवर्धन कहते हैं।
(It is difficult to remove embryos from very small seeds and very young embryos. There is a risk of damage to the embryo while removing it. To protect the embryo from being damaged, it is cultured only by keeping it inside the ovule. This technique is called ovule culture.)
· ऐसे नियंत्रित परागण वाले पौधों के पुष्प जिनमें भ्रूण के नष्ट होने की संभावना रहती है उन्हें निषेचन के तुरन्त बाद एकत्रित कर लिया जाता है। अंडाशय का सतही निर्जमीकरण करके इसके अन्दर से बीजाण्डों को निकालकर माध्यम पर स्थापित कर दिया जाता है।
(Flowers of plants with controlled pollination, that are likely to destroy the embryo, are collected immediately after fertilization. The ovary is surface sterilized and ovules are removed from it and placed on the medium.)
· बड़े बीज वाली जातियाँ जिनमें केवल एक बीज होता है उनमें बीजाण्ड संवर्धन आसानी से व कम समय में हो जाता है। जबकि छोटे बीज वाली जातियाँ जिनमें अनेक बीज होते हैं उनमें बीजाण्ड संवर्धन कठिन होता है व अधिक समय लेता है।
(In large seeded species that have only one seed, ovule culture is easily and in a short time. Whereas in small seeded species which contain many seeds, ovule culture is difficult and takes more time.)
iii. अंडाशय संवर्धन (Ovary Culture):-
· ऐसे नियंत्रित परागण वाले पौधों के पुष्प जिनमें भ्रूण के नष्ट होने की संभावना रहती है उन्हें निषेचन के तुरन्त बाद एकत्रित कर लिया जाता है। अंडाशय को छोड़कर पुष्प के शेष भागों को हटा दिया जाता है। अंडाशय का सतही निर्जमीकरण करके इसे माध्यम पर स्थापित कर दिया जाता है।
(Flowers of plants with controlled pollination, that are likely to destroy the embryo, are collected immediately after fertilization. The remaining parts of the flower are removed except the ovary. The ovary is surface sterilized and placed on the medium.)
· अंडाशय को माध्यम में इस प्रकार से स्थापित किया जाता है कि पुष्पवृंत माध्यम के अन्दर रहे।
(The ovary is placed on the medium in such a way that the pedicel remains inside the medium.)
· प्रयोग के अन्त में अंडाशय पौधे में विकसित हो जाता है।
(At the end of the experiment the ovary develops into the plantlet.)
5. अनुप्रयोग (Applications):-
a. भ्रूण अपघटन को रोकना (Prevention of Embryo Abortion):- अंतरा-जातीय व अंतरा-वंशीय संकरण प्रोग्रामों में अनिषेच्यता बाधाओं के कारण भ्रूण का अपघटन हो जाता है। भ्रूण बचाव से इस समस्या का निवारण हो जाता है। भ्रूण बचाव तकनीक के उपयोग से अनेक दूरस्थ संकर प्राप्त किए गए हैं जिनमें प्रतिरोधी लक्षण विकसित करने के उद्देश्य से दूरस्थ संकरण कराया गया था। इनकी सूची नीचे दी गयी है –
(Inter-specific and inter-generic hybridization programs embryo lead to degeneration due to incompatibility barriers. Embryo rescue solve this problem. A number of distant hybrids have been obtained using embryo rescue techniques in which wide hybridization was carried out with the aim of developing resistant traits. The list is given below.)
b. बीज प्रसुप्तावस्था से बचाव (Overcoming Seed Dormancy):-
· बीज प्रसुप्तावस्था अनेक कारकों के द्वारा उत्पन्न की जाती है –
(Seed dormancy is produced by several factors -)
Ø अंतर्जात्त अवरोधक (Endogenous Inhibitors)
Ø भ्रूण अपरिपक्वता (Embryo Immaturity)
Ø विशिष्ट प्रकाश व तापमान आवश्यकताएँ (Specific Light and Temperature Requirements)
Ø शुष्क भंडारण आवश्यकताएँ (Dry Storage Requirements)
· कुछ पौधों में बीज प्रसुप्तावस्था का प्राकृतिक काल अधिक लम्बा होता है।
(Some plants have a longer natural period of seed dormancy.)
· भ्रूण संवर्धन द्वारा उपरोक्त समस्याओं का आसानी से निवारण किया जा सकता है।
(The above problems can be easily solved by embryo culture.)
c. जनन चक्र को छोटा करना (Shortening of Breeding Cycle):-
· कुछ पौधों में प्राकृतिक रूप से जनन चक्र लम्बा समय लेता है। ऐसा अधिकतर बीज प्रसुप्तावस्था के कारण होता है जिसके लिए बीज चोल व भ्रूणपोष जिम्मेदार होते हैं।
(The reproduction cycle naturally takes a long time in some plants. This is mostly due to seed dormancy for which seed coat and endosperm are responsible.)
· ऐसे बीजों से भ्रूणो को निकालकर कृत्रिम माध्यम पर संवर्धन करके बहुत कम समय में पौधे के रूप में विकसित किया जा सकता है।
(Embryos are removed from such seeds and can develop into plants by culturing on artificial medium in a very short time.)
· उदाहरण के लिए Hollies (क्रिसमस सजावटी पौधा) बीज अंकुरण के द्वारा 3 वर्ष में अपना जनन चक्र पूर्ण करता है। जबकि भ्रूण संवर्धन के द्वारा 2 – 3 सप्ताहों में ही संतति पौधे उग जाते हैं।
[For example, Hollies (Christmas ornamental plant) completes its reproductive cycle in 3 years through seed germination. Whereas seedlings are developed in 2-3 weeks by embryo culture.]
d. बीज बंध्यता से बचाव (Overcoming Seed Sterility):-
· कुछ पादप जातियाँ बंध्य बीज उत्पन्न करती हैं जो अंकुरित नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए Cherry, Apricot व Plum की शीघ्र पकने वाली किस्में।
(Some plant species produce sterile seeds that do not germinate. For example, early ripening varieties of Cherry, Apricot and Plum.)
· बीज बंध्यता अधिकतर अपूर्ण भ्रूण विकास से संबन्धित होती है जिसके फलस्वरूप अंकुरित हो रहा भ्रूण नष्ट हो जाता है।
(Seed sterility is mostly related to incomplete embryonic development, resulting in the destruction of the germinating embryo.)
· बंध्य बीजों से अपूर्ण विकसित भ्रूण को निकालकर कृत्रिम माध्यम पर संवर्धित करके संतति पौधे विकसित किए जा सकते हैं।
(Progeny plants can be developed by extracting incompletely developed embryos from sterile seeds and cultured on artificial medium.)